इतिहास
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खाटू श्याम गाँव का इतिहास
खाटू श्याम कस्बा राजस्थान के सीकर जिले की ताता रामगढ़ तहसील का एक मध्यम आबादी वाला धार्मिक स्थल है जो कि खाटू श्याम बाबा के मंदिर के लिए जाना जाता है। यह जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। इस कस्बे के पूर्व में चोमू, पश्चिम में धींगपुर, उत्तर में मंडा और दक्षिण में लामिया की सीमा लगती है। इसका सभी सीमावर्ती गाँव से पक्की सड़क से संपर्क है। इस कस्बे का क्षेत्रफल लगभग 30 वर्ग किलोमीटर है। इस कस्बे की कुल आबादी लगभग 20000 लोगों की है। लुहाच परिवार के पास महज 40 बीघा जमीन है। लुहाच परिवार कस्बे से बाहर लगभग दो किलोमीटर दूर खेतों में मकान बना कर रहता है। पूरा इलाका बरानी है जिसकी सिचाई ट्यूबवैल के पानी से फवारा प्रणाली से होती है।
खाटू श्याम हिन्दू धर्म के लोगों की आस्था का स्थल रहा है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में महाबली भीम के पोते बर्बरीक ने युद्ध में हारते हुए पक्ष की तरफ से लड़ने का मन बनाया। जब कृष्ण को इसका पता चला तो वह उसकी परीक्षा लेने के इरादे से ब्राह्मण के भेष में बर्बरीक से एक पेड़ के सब पत्तों को तीर से भेद कर अपनी तीरंदाजी का प्रमाण देने को कहा। बर्बरीक ने एक ही तीर से यह सब कर दिखाया। कृष्ण ने सोचा कि यह तो धर्म की लड़ाई करने वाले पांडव पक्ष को हरा देगा जिससे अधर्म पक्ष के कौरवों की जीत हो जाएगी। इस लिए उसने बर्बरीक से वचन मांगा। बर्बरीक ने साधु रूप में कृष्ण को वर मांगने को कहा। कृष्ण ने वर में बर्बरीक का सिर मांगा। बर्बरीक ने कहा कि ठीक है में अपना सिर देता हूँ लेकिन पूरी लड़ाई देखना चाहता हूँ।
कृष्ण ने बर्बरीक का सिर युद्धक्षेत्र में ऊंची जगह रख दिया जिससे उसने सब लड़ाई को देखा। कृष्ण ने बर्बरीक को बदले में वरदान दिया कि कलयुग में आप को श्याम (कृष्ण का उपनाम) के नाम से पूजा जाएगा। बर्बरीक का सिर युद्ध के बाद खाटू नगर में दफनाया गया। इसी जगह को बाद में खाटू श्याम के नाम से जाना जाने लगा। खाटू श्याम बाबा की पूजा विश्व विख्यात है। सारगोठ गाँव की वंशावली पीढ़ी संख्या 36 के मुताबिक राधू राम लुहाच सपरिवार 1950 ईस्वी में खाटू श्याम आ गया।
इस कस्बे में लुहाच गौत्र के प्रथम पुरुष राधू राम 1950 ईस्वी में सीकर जिले के सारगोथ गाँव से में आए थे। राधू राम से अब तक खाटू श्याम में लुहाच गौत्र की 4 वीं पीढ़ी चल रही है।